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त्वं ताँ इ॑न्द्रो॒भयाँ॑ अ॒मित्रा॒न्दासा॑ वृ॒त्राण्यार्या॑ च शूर। वधी॒र्वने॑व॒ सुधि॑तेभि॒रत्कै॒रा पृ॒त्सु द॑र्षि नृ॒णां नृ॑तम ॥३॥

English Transliteration

tvaṁ tām̐ indrobhayām̐ amitrān dāsā vṛtrāṇy āryā ca śūra | vadhīr vaneva sudhitebhir atkair ā pṛtsu darṣi nṛṇāṁ nṛtama ||

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Pad Path

त्वम्। तान्। इ॒न्द्र॒। उ॒भया॑न्। अ॒मित्रा॑न्। दासा॑। वृ॒त्राणि॑। आर्या॑। च॒। शू॒र॒। वधीः॑। वना॑ऽइव। सुऽधि॑तेभिः। अत्कैः॑। आ। पृ॒त्ऽसु। द॒र्षि॒। नृ॒णाम्। नृ॒ऽत॒म॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:33» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:6» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (नृणाम्) मुखियाजनों में (नृतम) अत्यन्त मुखिया (शूर) दुष्टों के नाशक (इन्द्र) राजन् ! (त्वम्) आप (तान्) उन (अमित्रान्) दुष्ट सब को पीड़ा देनेवाले और (आर्या) धर्मिष्ठ उत्तम जनों को (च) और (उभयान्) दो प्रकार के विभाग करके दुष्ट और पीड़ा देनेवालों का (पृत्सु) सङ्ग्रामों में (वनेव) अग्नि जैसे वनों का, वैसे (वधीः) नाश करिये और (सुधितेभिः) उत्तम प्रकार से तृप्त किये गये (अत्कैः) घोड़ों से (आ, दर्षि) विदीर्ण करते हो और धर्म्मिष्ठ उत्तम जनों की रक्षा करते हो तथा (दासा) देने योग्य (वृत्राणि) धनों को प्राप्त होते हो, इससे विवेकी हो ॥३॥
Connotation: - जो राजा उत्तम, अनुत्तम, धार्मिक और अधार्मिकों का परीक्षा से विभाग करके उत्तमों की रक्षा करता और दुष्टों को दण्ड देता है, वही सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य को प्राप्त होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे नृणां नृतम शूरेन्द्र ! त्वं तानमित्रानार्या चोभयान् विभज्याऽमित्रान् पृत्सु वनेव वधीः सुधितेभिरत्कैरा दर्ष्यार्या च रक्षसि दासा वृत्राण्याप्नोषि तस्माद्विवेक्यसि ॥३॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (तान्) (इन्द्र) राजन् (उभयान्) द्विविधान् (अमित्रान्) दुष्टान्त्सर्वपीडकान् (दासा) दातव्यानि (वृत्राणि) धनानि (आर्या) धर्मिष्ठानुत्तमान् जनान् (च) (शूर) दुष्टानां हिंसक (वधीः) हन्याः (वनेव) अग्निर्वनानीव (सुधितेभिः) सुष्ठुतृप्तैः (अत्कैः) अश्वैः (आ) (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु (दर्षि) विदारयसि (नृणाम्) नायकानां मध्ये (नृतम) अतिशयेन नायक ॥३॥
Connotation: - यो राजोत्तमाननुत्तमान् धार्मिकानधार्मिकांश्च समीक्षया विभज्योत्तमान् रक्षति दुष्टान् दण्डयति स एव सर्वमैश्वर्यमाप्नोति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा उच्च, नीच, धार्मिक, अधार्मिक यांची परीक्षा करून त्यांना वेगवेगळे करतो तसेच उत्तमांचे रक्षण व दुष्टांना दंड देतो तोच संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतो. ॥ ३ ॥